सुखासन एक सरल योगासन है जिसे “ईज़ी पोज़” pleasent or easy pose भी कहा जाता है। इसमें साधक ज़मीन पर पालथी मारकर बैठता है, रीढ़ सीधी रहती है, कंधे ढीले रहते हैं और हाथ घुटनों पर रखे जाते हैं, प्रायः किसी मुद्रा के साथ। यह आसन ध्यान, प्राणायाम और विश्रांति के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। नाम भले ही सुखासन हो, लेकिन शुरुआत में यह हर किसी को आसान नहीं लगता, खासकर यदि कूल्हों या घुटनों में जकड़न हो। नियमित अभ्यास से लचीलापन बढ़ता है। यह आसन मन को शांत करता है, तनाव कम करता है, एकाग्रता बढ़ाता है और श्वास को संतुलित बनाता है।
सुखासन में कैसे बैठें? (How to Sit in Sukhasana)
सुखासन एक पारंपरिक ध्यान मुद्रा है, जिसमें साधक आरामदायक स्थिति में बैठकर मानसिक शांति और एकाग्रता प्राप्त करता है। यह आसन शरीर को स्थिर रखता है और लंबे समय तक ध्यान व प्राणायाम करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। सही ढंग से करने पर यह मन और शरीर दोनों को संतुलित करता है।
- सबसे पहले एक समतल स्थान पर चटाई बिछाकर बैठें।
- दोनों पैरों को क्रॉस करके पालथी की मुद्रा में बैठें
- रीढ़ की हड्डी को सीधा और लंबा रखें।
- कंधों को ढीला छोड़ दें और तनाव न लें।
- दोनों हाथों को घुटनों पर रखें और चाहे तो ज्ञान मुद्रा या चिन मुद्रा लगाएँ।
- आँखें धीरे से बंद कर लें और सामान्य श्वास लेते रहें।
- पूरे शरीर को आराम दें और मन को भीतर की ओर केंद्रित करें।
- कम से कम 5 से 10 मिनट तक इस आसन में रहें।
- अभ्यास के बाद धीरे से आँखें खोलें और पैरों को सीधा कर लें।
- शुरुआत में यदि कूल्हों या घुटनों में खिंचाव महसूस हो तो नीचे कुशन या तख़्त लगाएँ।
- लम्बे समय तक बैठने का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाएँ।
- पीठ को झुकाएँ नहीं, सदैव सीधी रखें।
- इस आसन का अभ्यास सुबह के समय करना अधिक लाभकारी है।
सुखासन के लाभ (Benefits of Sukhasna)
सुखासन सिर्फ एक साधारण बैठने की मुद्रा नहीं है, बल्कि यह मन, शरीर और आत्मा के लिए अत्यंत लाभकारी आसन है। यह ध्यान, प्राणायाम और मंत्र-जप की मूल मुद्रा है, जो साधक को आंतरिक शांति और स्थिरता प्रदान करती है। नियमित अभ्यास से व्यक्ति का मानसिक संतुलन सुधरता है और शरीर में हल्कापन महसूस होता है। नीचे सुखासन के प्रमुख लाभ बताए गए हैं:
- मानसिक शांति: यह आसन मन को स्थिर करता है और तनाव, चिंता तथा बेचैनी को कम करता है।
- एकाग्रता में वृद्धि: ध्यान लगाने में सहायक होने के कारण एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
- तनाव मुक्ति: लगातार अभ्यास से मानसिक दबाव और थकान दूर होती है।
- सही श्वसन प्रक्रिया: इसमें बैठने से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है और श्वास-प्रश्वास गहरा व नियमित होता है।
- शरीर की स्थिरता: लंबे समय तक स्थिर बैठने की आदत डालता है, जो ध्यान और साधना में सहायक है।
- रीढ़ की मजबूती: रीढ़ सीधी रखने से पीठ और कमर की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।
- सकारात्मक ऊर्जा: शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे मन प्रसन्न रहता है।
- आध्यात्मिक लाभ: ध्यान और आत्मचिंतन में गहराई लाने के लिए यह सबसे उत्तम आसनों में से एक है।
सुखासन के निषेध (Contraindications of Sukhasna)
सुखासन साधारण और सुरक्षित आसन माना जाता है, लेकिन हर किसी के लिए यह उपयुक्त नहीं होता। यदि शरीर में कुछ विशेष समस्याएँ हैं तो इस आसन से असुविधा या दर्द हो सकता है। इसलिए इसे करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
- जिन लोगों को घुटनों में दर्द या गठिया (Arthritis) की समस्या है, उन्हें लंबे समय तक सुखासन में बैठने से बचना चाहिए।
- यदि किसी को कूल्हों में जकड़न या चोट है तो यह आसन करने पर तकलीफ हो सकती है।
- स्लिप डिस्क या रीढ़ से संबंधित गंभीर रोगियों को सुखासन करते समय चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
- लंबे समय तक इस मुद्रा में बैठने से पैरों में सुन्नपन या झनझनाहट हो सकती है, ऐसे में तुरंत आसन बदल लें।
- शुरुआती साधक को यदि असुविधा हो तो नीचे तकिया या कुशन का सहारा लेना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
सुखासन एक सरल लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण योगासन है जो शरीर और मन दोनों को शांति और संतुलन प्रदान करता है। यह ध्यान, प्राणायाम और आत्मचिंतन की आदर्श मुद्रा है। नियमित अभ्यास से एकाग्रता, लचीलापन और मानसिक शांति बढ़ती है। हालाँकि घुटनों, कूल्हों या रीढ़ की समस्या वाले लोगों को सावधानी रखनी चाहिए। यह आसन न केवल शारीरिक स्थिरता देता है, बल्कि साधक को आत्मिक गहराई तक ले जाकर आध्यात्मिक उन्नति में सहायक बनता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न: (FAQs)
सुखासन का दूसरा नाम “ईज़ी पोज़” या “ईज़ी क्रॉस-लेग्ड पोज़” है। संस्कृत में इसे आसान आसन भी कहा जाता है क्योंकि इसमें व्यक्ति आराम से बैठकर ध्यान और प्राणायाम कर सकता है। यह ध्यान की मूल मुद्रा मानी जाती है।
सुखासन का अर्थ है “आराम से बैठने की मुद्रा।” संस्कृत में “सुख” का मतलब है सहजता, आराम और प्रसन्नता, जबकि “आसन” का अर्थ है बैठने की स्थिति। इस प्रकार सुखासन का शाब्दिक अर्थ है ऐसा आसन जिसमें शरीर और मन दोनों को शांति और सुख का अनुभव हो। यह ध्यान और प्राणायाम के लिए आदर्श आसन है।
ध्यान के लिए पारंपरिक सुखासन सबसे उपयोगी माना जाता है क्योंकि इसमें रीढ़ सीधी रहती है, शरीर स्थिर होता है और श्वास नियंत्रित रहती है। इस आसन में लंबे समय तक बिना थके बैठा जा सकता है। साधक आराम से अपनी चेतना को भीतर केंद्रित कर पाता है, जिससे मन की शांति और गहरी एकाग्रता प्राप्त होती है।
स्थिर सुखासन वह स्थिति है जब साधक सुखासन में बैठकर बिना किसी हिलजुल के लंबे समय तक स्थिर रहता है। इसमें रीढ़ पूरी तरह सीधी, कंधे ढीले और मन शांत रहता है। यह आसन ध्यान, प्राणायाम और आत्मचिंतन के लिए गहरी स्थिरता और संतुलन प्रदान करता है।
Also Read:-



